शुक्रवार, 28 अक्तूबर 2011

सवाल

कल रात फिर उसी अनसुलझे सवाल ने मुझे सारी रात जगाये रखा, 
बरामदे में चारपाई पर लेटा, अन्तरिक्ष में शून्य को निहारते हुए
जाने कब रात के अंधेरे ने साथ छोड़ दिया कुछ पता ही नहीं 
सारी रात सिर्फ सोचता रहा तेरे बारे में, तेरी उन झील सी घहराई लिए आँखों के बारे में,
आज मेरे जेहन वो लम्हे ताजा है, ऐसा लगता है जैसे कल ही की बात है.......
आज भी याद है मुझे वो वक्त जब उसने रोते हुए कहा था नफ़रत करती है वो मुझसे.........
पर आज तक न समझ पाया मै, अगर वो मुझसे नफ़रत करती है तो फिर जाते वक्त इतना रोयीं क्यों ????????? 

मंगलवार, 9 अगस्त 2011

एक रात और.................

कल फिर नहीं सोया मई रात को ,
सिर्फ ये सोच कर की कही फिर तू न चली आये ख्वाबो में मेरे
सच कहता हु बहुत दर्द होता है 
बहुत सारी राते यु ही नहीं सोता हू,
क्यों कुछ न बोल पाया मै ???????
अधुरा रह गया मेरा ये सवाल ,
क्या कभी पा सकूँगा इसका जवाब या ख़त्म हो जाएगी ये जिन्दगी यू ही ??????????????????????

शनिवार, 23 जुलाई 2011

थक गई है आँखे तेरा इंतजार करते -करते,

अब तो ऐसा लगता है की कुछ भी नहीं बचा है 

मै शायद एक बार फिर वही खड़ा हो गया जहाँ से कभी शुरू किया था अपनी मंजिल का सफ़र,

दिल तो करता है की ठहर जाउ ता उम्र उसी मोड़ पर जहाँ तुमने छोड़ा था मुझे,

पर नहीं दिमाग मुझे इसकी इजाजत नहीं देता 

बस इसी कश्मकश में बीत जाती है रात 

और फिर सुबह वही जिन्दगी वही जिम्मेदारिय 

फिर शुरू ...........................................................

बुधवार, 25 मई 2011

भैंस चालीसा

भैंस चालीसा
महामूर्ख दरबार में, लगा अनोखा केस
फसा हुआ है मामला, अक्ल बङी या भैंस
अक्ल बङी या भैंस, दलीलें बहुत सी आयीं
महामूर्ख दरबार की अब,देखो सुनवाई
मंगल भवन अमंगल हारी- भैंस सदा ही अकल पे भारी
भैंस मेरी जब चर आये चारा- पाँच सेर हम दूध निकारा
कोई अकल ना यह कर पावे- चारा खा कर दूध बनावे
अक्ल घास जब चरने जाये- हार जाय नर अति दुख पाये
भैंस का चारा लालू खायो- निज घरवारि सी.एम. बनवायो
तुमहू भैंस का चारा खाओ- बीवी को सी.एम. बनवाओ
मोटी अकल मन्दमति होई- मोटी भैंस दूध अति होई
अकल इश्क़ कर कर के रोये- भैंस का कोई बाँयफ्रेन्ड ना होये
अकल तो ले मोबाइल घूमे- एस.एम.एस. पा पा के झूमे
भैंस मेरी डायरेक्ट पुकारे- कबहूँ मिस्ड काल ना मारे
भैंस कभी सिगरेट ना पीती- भैंस बिना दारू के जीती
भैंस कभी ना पान चबाये - ना ही इसको ड्रग्स सुहाये
शक्तिशालिनी शाकाहारी- भैंस हमारी कितनी प्यारी
अकलमन्द को कोई ना जाने- भैंस को सारा जग पहचाने
जाकी अकल मे गोबर होये- सो इन्सान पटक सर रोये
मंगल भवन अमंगल हारी- भैंस का गोबर अकल पे भारी
भैंस मरे तो बनते जूते- अकल मरे तो पङते जूते
 
 
बस यूँ ही कही मिल गया था पढने को............................................................ 

रविवार, 8 मई 2011

लौट आओ..............


मत जाओ इतनी दूर हमसे,
की आदत हो जाये तेरे बिना जीने की
फिर न कहना की तुम कितने बदल गए हो
लौट आओ मेरे लिए,
अपने लिए,
हमारे लिए,
देर ना हो जाये.............................

मंगलवार, 26 अप्रैल 2011

तेरा इंतजार

अब तो हर रात तनहा होती है,
हर लम्हा, हर वक्त किस्मत से शिकायत होती है,
जानता हूँ पा नहीं सकता तुझे,
पर जाने क्यों ये तुझे ही चाहता है


क्या तुझे पाऊंगा इस जन्म में ?
या फिर करना पड़ेगा मुझे इंतजार ............................................

              I'a still waiting for u n u only n sure that once upon a time u have to come back for me................



गुरुवार, 14 अप्रैल 2011

इंतजार


आज फिर  जिन्दगी ने दोराहे पर ला खड़ा किया हमें,
वक्त आ गया है किसी हमसाये के साथ का,
क्या तुम सुन रही हो?
क्या तुम आओगी मेरा साथ देने?
मुझे  जरुरत है तेरी
मुझे तब भी तेरा इंतजार था आज फिर है
जाने कब आओगी तुम

इंतजार है मुझे तेरे आने का

शुक्रवार, 11 मार्च 2011

wo collage ke din

1.College ------- Yaadein

2.Pricipal ------ Jaani Dushman

3.Classes ------- Kabhi kabhi

4.Canteen--- ---- Kabhi alvida na kehna

5.Course -------- Godzilla

6.Exams -------- Kalyug

7.Examination hall ---- Chamber of secret

8.Exam-time ---------- Qayamat se qayamt tak

9. Question paper --------- Paheli

10.Answer paper ---------- Kora kagaz

11.Cheating ---------- Aksar/Chupke chupke

12. Paper out ---------- Plan

13.Examiner ------------ - The killer

14.Last exam ----------- Independence day

15.Paper correction --------- Andha kanoon

16.Marks ----------- Assambhav

17.Result ----------- Murder

सोमवार, 7 मार्च 2011

यमराज

एक दिन

यमदेव ने दे दिया

अपना इस्तीफा।

मच गया हाहाकार
 
बिगड़ गया सब

...संतुलन,

करने के लिए

स्थिति का आकलन,

इन्द्र देव ने देवताओं

की आपात सभा

बुलाई

और फिर यमराज

को कॉल लगाई।



'डायल किया गया

नंबर कृपया जाँच लें'

कि आवाज तब सुनाई।



नये-नये ऑफ़र

देखकर नम्बर बदलने की

यमराज की इस आदत पर

इन्द्रदेव को खुन्दक आई,



पर मामले की नाजुकता

को देखकर,

मन की बात उन्होने

मन में ही दबाई।

किसी तरह यमराज

का नया नंबर मिला,

फिर से फोन



लगाया गया तो

'तुझसे है मेरा नाता

पुराना कोई' का

मोबाईल ने

कॉलर टयून सुनाया।



सुन-सुन कर ये

सब बोर हो गये

ऐसा लगा शायद

यमराज जी सो गये।



तहकीकात करने पर

पता लगा,

यमदेव पृथ्वीलोक

में रोमिंग पे हैं,

शायद इसलिए,

नहीं दे रहे हैं

हमारी कॉल पे ध्यान,

क्योंकि बिल भरने

में निकल जाती है

उनकी भी जान।



अन्त में किसी

तरह यमराज

हुये इन्द्र के दरबार

में पेश,

इन्द्रदेव ने तब

पूछा-यम

क्या है ये

इस्तीफे का केस?



यमराज जी तब

मुँह खोले

और बोले-



हे इंद्रदेव।

'मल्टीप्लैक्स' में

जब भी जाता हूँ,

'भैंसे' की पार्किंग

न होने की वजह से

बिन फिल्म देखे,

ही लौट के आता हूँ।



'बरिस्ता' और 'मैकडोन्लड'

वाले तो देखते ही देखते

इज्जत उतार

देते हैं और

सबके सामने ही

ढ़ाबे में जाकर

खाने-की सलाह

दे देते हैं।



मौत के अपने

काम पर जब

पृथ्वीलोक जाता हूँ

'भैंसे' पर मुझे

देखकर पृथ्वीवासी

भी हँसते हैं

और कार न होने

के ताने कसते हैं।



भैंसे पर बैठे-बैठे

झटके बड़े रहे हैं

वायुमार्ग में भी

अब ट्रैफिक बढ़ रहे हैं।

रफ्तार की इस दुनिया

का मैं भैंसे से

कैसे करूँगा पीछा।

आप कुछ समझ रहे हो

या कुछ और दूँ शिक्षा।



और तो और, देखो

रम्भा के पास है

'टोयटा'

और उर्वशी को है

आपने 'एसेन्ट' दिया,

फिर मेरे साथ

ये अन्याय क्यों किया?



हे इन्द्रदेव।

मेरे इस दु:ख को

समझो और

चार पहिए की

जगह

चार पैरों वाला

दिया है कह

कर अब मुझे न

बहलाओ,

और जल्दी से

'मर्सिडीज़' मुझे

दिलाओ।

वरना मेरा

इस्तीफा

अपने साथ

ही लेकर जाओ।

और मौत का

ये काम

अब किसी और से

करवाओ।

शुक्रवार, 4 मार्च 2011

भारतीय गरीब है लेकिन भारत देश कभी गरीब नहीं रहा” ये कहना है स्विस बैंक के डाइरेक्टर का

भारतीय गरीब है लेकिन भारत देश कभी गरीब
नहीं रहा” ये कहना है स्विस बैंक के डाइरेक्टर का. स्विस बैंक के डाइरेक्टर
ने यह भी कहा है कि भारत का लगभग 280 लाख करोड़ रुपये (280 ,00 ,000 ,000
,000) उनके स्विस बैंक में जमा है. ये रकम इतनी है कि भारत का आने वाले 30
सालों का बजट बिना टैक्स के बनाया जा सकता है. या यूँ कहें कि 60 करोड़
रोजगार के अवसर दिए जा सकते है. या यूँ भी कह सकते है कि भारत के किसी भी
गाँव से दिल्ली तक 4 लेन रोड बनाया जा सकता है. ऐसा भी कह सकते है कि 500
से ज्यादा सामाजिक प्रोजेक्ट पूर्ण किये जा सकते है. ये रकम इतनी ज्यादा है
कि अगर हर भारतीय को 2000 रुपये हर महीने भी दिए जाये तो 60 साल तक ख़त्म
ना हो.

यानी भारत को किसी वर्ल्ड बैंक से लोन लेने कि कोई जरुरत
नहीं है. जरा सोचिये … हमारे भ्रष्ट राजनेताओं और नोकरशाहों ने कैसे देश को
लूटा है और ये लूट का सिलसिला अभी तक 2010 तक जारी है. इस सिलसिले को अब
रोकना बहुत ज्यादा जरूरी हो गया है. अंग्रेजो ने हमारे भारत पर करीब 200
सालो तक राज करके करीब 1 लाख करोड़ रुपये लूटा. मगर आजादी के केवल 64 सालों
में हमारे भ्रस्टाचार ने 280 लाख करोड़ लूटा है. एक तरफ 200 साल में 1 लाख
करोड़ है और दूसरी तरफ केवल 64 सालों में 280 लाख करोड़ है. यानि हर साल
लगभग 4.37 लाख करोड़, या हर महीने करीब 36 हजार करोड़ भारतीय मुद्रा स्विस
बैंक में इन भ्रष्ट लोगों द्वारा जमा करवाई गई है.

भारत को किसी
वर्ल्ड बैंक के लोन की कोई दरकार नहीं है. सोचो की कितना पैसा हमारे भ्रष्ट
राजनेताओं और उच्च अधिकारीयों ने ब्लाक करके रखा हुआ है.

हमे
भ्रस्ट राजनेताओं और भ्रष्ट अधिकारीयों के खिलाफ जाने का पूर्ण अधिकार है.
हाल ही में हुवे घोटालों का आप सभी को पता ही है – CWG घोटाला, २ जी
स्पेक्ट्रुम घोटाला , आदर्श होउसिंग घोटाला … और ना जाने कौन कौन से घोटाले
अभी उजागर होने वाले है …….

गुरुवार, 3 मार्च 2011

फंडा मैनेजमेंट का

ये कुछ पंक्तिया हैं जो प्रेमपाल शर्मा जी के हास्य व्यंग "फंडा मैनेजमेंट का" से है उम्मीद करता हूँ पसंद आयेगी|



चूहे और सरकार



दोपहर तक यह बात एक समस्या के रूप में सचिवालय के सारे कॉरीडोरों में घूमने लगी कि दफ्तर में चूहे काफी हो गए हैं, क्या किया जाए ?
‘‘मेरी तो आधी रैक ही खा डाली।’’

‘‘अरे तुम्हारी फाइलें तो चलो बाहर थीं। बेचारे दावत का माल समझकर कुतर गए होंगे। मेरी तो आलमारी में बंद थी। लोहे की आलमारी में...गोदरेज, समझे !’’

‘‘अच्छा ! कमाल हो गया। गोदरेज की अलमारी में से खा गए !’’ आश्चर्य ने गुप्ताजी का चश्मा हटवा दिया।
‘‘ये बात मेरी समझ से भी बाहर है कि आखिर उसमें घुसे कैसे ? सूत भर भी तो रास्ता नहीं है उसमें जाने का।’’
‘‘अजी घुसने की जरूरत ही क्या है, अंदर ही घर होगा उनका। घुसे तो आप हैं उनके घर में।’’ किसी ने वर्माजी को छेड़ा।

‘‘लकड़ी का तो सुना है, चूहे काट सकते हैं, पर लोहा ! स्टील ! मान गए भाई, चूहों को भी। आजादी के जितने पुराने दस्तावेज थे, सबका चूरन बना दिया दुष्टों ने।’’
‘‘सर ! जिधर मैं बैठती हूँ, वहां भी बहुत हैं। इसीलिए तो मैं अपने पास कोई फाइल नहीं रखती।’’

‘‘और इसलिए, मैं आपसे फिर कह रहा हूं कि आप अपनी सीट मेरे कमरे में ही लगवा लें। दिल में जगह होनी चाहिए...मुझे तो कोई तकलीफ नहीं होगी।’’

तो फिर क्या करना चाहिए ?
‘‘सर ! हमें तुरंत प्रशासन को इत्तिला करनी चाहिए। ये उनका काम है–ड्यूटी लिस्ट के अनुसार।’’
‘‘और क्या ? आखिर प्रशासन करता क्या है जो उनसे चूहे भी नहीं मारे जाते।’’

‘‘अजी क्या पता इन्होंने खुद चूहे मंगवाकर छोड़ दिए हों। ऑडिट वालों को कह तो भी देंगे कि सारे रिकार्ड चूहे खा गए, अब कहां से लाएं ?’’
‘‘मामला गंभीर है सर ! हमें तुरंत कार्रवाई करनी चाहिए।’’ बड़े बाबू ने सबको जिम्मेदारी का पाठ पढ़ाया।

‘‘हां सर ! इससे गंभीर बात क्या हो सकती है ! जिन रिकार्डों को द्वितीय विश्व-युद्घ में जापान नहीं छीन पाया उसे आजाद भारत के ये चूहे इतने मजे-मजे में हजम कर गए और कानों-कान पता भी नहीं चला !’’
‘‘सर, आपको कब पता चला ?’’

‘‘आज ही, मैंने तो ये आलमारी दो साल से खोली ही नहीं थी। आज जरा ये डायरी रखने के लिए जैसे ही ये अलमारी खोली तो ये माजरा...’’
‘‘अच्छा हुआ सर ! वरना ये नई डायरियां भी खा जाते।’’

‘‘नहीं, वो मैं कभी नहीं करता। नई डायरियां तो मैं सीधे घर ही ले जाता हूं।’’
‘‘सर ठीक कहते हैं, चूहों की जाति का क्या भरोसा। इनके लिए नई-पुरानी, गोरी-काली सब बराबर हैं।’’
तो फिर क्या किया जाए ? प्रश्न गंभीर से भी बड़ा होता जा रहा था।

‘‘सर, मैं एक डिटेल नोट तैयार करता हूं। चूहे कब आए ? ये बिल्डिंग कब बनी ? शुरू में कितने थे और आज कितने ? हर पंचवर्षीय योजना में उनका प्रतिशत कितना बढ़ा है ? किस कमरे में सबसे ज्यादा हैं और किसमें सबसे कम ? कितनी जातियां हैं इनकी, और हर जाति कितनी उम्र तक जिंदा रहती है। इन्होंने प्रतिवर्ष कितनी फाइलें कुतरी हैं और किस विभाग की सबसे ज्यादा ? आसपास के किन-किन मंत्रालयों में उनका आना-जाना है।’’

‘‘सर, आप मानें या न मानें, इसमें विदेशी हाथ भी हो सकता है। जब जम्मू, पंजाब और आसाम में गुपचुप आतंकवादी उतारे जा सकते हैं तो ये तो चूहे हैं। सोचा होगा, हम दुश्मनों को बरबाद करेंगे और चूहे उनके रिकार्डों को। हमारी तो सारी मेहनत पर ही पानी फिर गया।’’

‘‘कब तक तैयार हो जाएगा ये नोट ?’’
‘‘सर ! ज़्यादा टाइम नहीं लगेगा। अभी तो मैं मच्छरों वाली रिपोर्ट बना रहा हूं। आप हुक्म दें तो मैं उसे बीच में छोड़कर पहले इसे शुरू कर दूं।’’

‘‘सर ! मच्छरों वाली रिपोर्ट तो बरसात के बाद भी बन सकती है। और फिर मच्छर-मलेरिया तो आजादी से भी पहले से चल रहा है। महीने-दो-महीने में ही क्या बिगड़ जाएगा। कहिए तो सर, मैं अभी टूर प्रोग्राम बनाकर लाता हूं। पटना, लखनऊ, भोपाल, कलकत्ता के सचिवालयों की स्थिति पर भी हमारी रिपोर्ट में कुछ होना चाहिए, आखिर हम केंद्र सरकार के नुमाइंदे हैं।’’

‘‘सर, मेरा मानना है कि इसमें रूस का अनुभव बहुत महत्त्वपूर्ण हो सकता है। जारशाही के समय कहते हैं कि ऐसे-ऐसे चूहे हो गए थे जो आदमियों पर भी हमला करने लगे थे।’’

‘‘अरे ! ये तो बहुत खतरनाक बात है। यहां किसी पर हमला हो गया तो डिपार्टमेंटल एक्सन हो जाएगा।’’ मातहतों की गंभीरता से सर घबराए जा रहे थे।
‘‘सर ! हमें तो अपनी सीट पर बैठने में भी डर लगता है। कम से कम कैंटीन में चूहे तो नहीं हैं।’’ स्टेनो बोली।

बूढ़ा गरीबदास एक कोने में अपने काम में व्यस्त था। इतनी लंबी-लंबी बहसें तो उसने अंग्रेजों के जमाने में भी नहीं सुनी थी और वह भी चूहों पर। आखिर जैसे ही उसके कान इस चक-चक से पकने को हुए, उसने सुझाव देना ही उचित समझा। ‘‘रुपये दो रुपये की दवा आएगी। आटे की गोलियों में मिलाकर रख देते हैं, चूहे खत्म। घर पर भी तो हम यही करते हैं।’’

‘‘गरीबदास, ये तुम्हारा घर नहीं है, सरकारी दफ्तर है। परमिशन ले ली है दवा लाने की ? जहर होता है जहर–असली। उठाकर किसी बाबू ने खा ली तो ? बंधे-बंधे फिरोगे। नौकरी तो जाएगी ही, पेंशन भी बंद हो जाएगी प्यारे !’’

गरीबदास सिकुड़कर पीछे बैठ गया।
‘‘ये तो वही रहेगा जिसे कहते हैं...’’
‘‘सर, मैं एक बात और कहना चाहता था ?’’

‘‘कहो मिस्टर गुप्ता ! जल्दी कहो। मेरे पास इतना वक्त नहीं है कि उसे बेकार की बहस में गवाऊं। मुझे तीन बजे एक सेमिनार में जाना है।’’

गुप्ताजी सर के कानों तक गरदन लंबी करके फुसफुसाने लगे, ‘‘सर मिस्टर सिंह को अमेरिका भिजवा दो। यह इस बीच वहां की रिपोर्ट ले जाएगा। एक तो हमें कम्युनिस्ट देश के साथ-साथ कैपिटलिस्ट देश की जानकारी भी होनी चाहिए, वरना वित्त मंत्रालय हमारे प्लान को स्वीकृत नहीं करेगा और दूसरे सिंह साहिबान भी चुप बने रहेंगे, वरना कहेंगे अपने अपनों को (सवर्णों) तो विदेश भेज दिया और हमें यहां चूहों से कटवाने के लिए छोड़ दिया। सामाजिक न्याय का भी तो ध्यान रखना है।

मिस्टर गुप्ता की गरदन जब लौटकर पीछे हुई तो सर उसे गर्वित नजरों से देख रहे थे।
‘‘तो ठीक है इस टॉप प्रायरटी दी जाए।’’